दुबई प्रशासन ने अवैध ‘सबलेटिंग’ यानी किराए पर लिए गए मकानों को और छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर दोबारा किराए पर देने पर सख्त कार्रवाई शुरू कर दी है। यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि इन मकानों में आग लगने का खतरा बहुत ज्यादा है। हाल ही में एक बड़ी बिल्डिंग में आग लगी थी, जिसके बाद यह सख्ती और तेज़ हो गई।
इन छोटे-छोटे कमरों या बेड शेयर करने वाले मजदूर बहुत ही कम पैसे में रहते हैं। कुछ तो सिर्फ कुछ डॉलर रोज़ाना में जगह पा लेते हैं। लेकिन अब कई मजदूरों को घर से निकाला जा रहा है और कुछ को डर है कि उनका नंबर भी जल्दी ही आ सकता है।
दुबई की सरकार का कहना है कि यह कार्रवाई लोगों की सुरक्षा के लिए की जा रही है, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि जो लोग वैध और महंगे मकान नहीं ले सकते, वे अब कहां जायेंगे ?
मज़दूरों की हालत क्यों बिगड़ रही है?
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दुबई में अमीर लोगों के लिए रियल एस्टेट का तेज़ विकास हो रहा है।
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2024 के मुकाबले इस साल किराए 18% तक बढ़ सकते हैं।
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अधिकतर प्रवासी मजदूर सिर्फ $300–$550 मासिक कमाते हैं।
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औसतन एक बेडरूम का फ्लैट $1400 मासिक किराए पर मिलता है — जो इन मजदूरों की पहुंच से बाहर है।
कुछ कंपनियां अपने कम कमाने वाले कर्मचारियों को रहने की जगह देती हैं, लेकिन कई प्रवासी लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, जिनके लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
मजदूरों की स्थिति कितनी खराब है?
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कुछ लोग एक ही बिस्तर दो लोग शेयर करते हैं।
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कुछ मकानों में 14 से 20 लोग एक ही कमरे में रहते हैं।
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कोई लड़की प्लाईवुड से बने बंक बेड के नीचे सोते थे और खड़े होने पर सिर टकरा जाता था।
इस परिस्थिति में प्रवासी मजदूरों को मजबूरी में सस्ते और असुरक्षित मकानों में रहना पड़ता है, वे अब सरकारी कार्रवाई के डर से सहमे हुए हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि शायद सरकार गरीब मजदूरों को दुबई में नहीं चाहती।




