मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि सऊदी अरब अपने ही नागरिकों की बड़ी संख्या को देश छोड़ने से रोक रहा है, ताकि वे सरकार की आलोचना न कर सकें।
इनमें महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली प्रमुख कार्यकर्ता भी शामिल हैं, जैसे लुजैन अल-हथलौल, जिन्होंने सऊदी में महिलाओं को गाड़ी चलाने का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया था और मरियम अल-ओतैबी, जिनके साथ उनकी दो बहनों को भी सरकार ने निशाना बनाया है। इन पर लंबे समय की यात्रा पाबंदी लगाई गई है। कई मामलों में यह पाबंदियां उनके परिवार वालों तक भी फैलाई गई हैं।
दोहरी नीति पर सवाल
एक तरफ सऊदी अरब विदेशी पर्यटकों को आमंत्रित कर रहा है और विश्व स्तरीय खेल व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कर रहा है (जैसे 2034 का फीफा वर्ल्ड कप), वहीं दूसरी ओर देश के भीतर आलोचना करने वालों की आवाज दबाई जा रही है।
लुजैन की बहन, लीना अल-हथलौल ने कहा “सरकार के लिए लोगों को जेल भेजना अब उतना आसान नहीं रहा, इसलिए वे अब यात्रा बैन का तरीका अपना रहे हैं। ये बैन न केवल कार्यकर्ताओं की आवाज को दबाते हैं, बल्कि उनके परिवार वालों को भी चुप करा देते हैं। ये एक तरह की सामूहिक सज़ा है।”
अदालत से या चुपचाप बैन
कई कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा होने के बाद आधिकारिक तौर पर यात्रा बैन कर दिया जाता है, जबकि कुछ को पता तब चलता है जब वे एयरपोर्ट पर जाने की कोशिश करते हैं और उन्हें रोक लिया जाता है। मानवाधिकार संस्था ALQST ने ऐसे 20 लोगों की सूची जारी की है, जिन पर यह “अन्यायपूर्ण और अमानवीय यात्रा बैन” लगा है, लेकिन उनका कहना है कि असल संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है। लुजैन को रिहाई के बाद दो साल 10 महीने तक यात्रा करने की अनुमति नहीं थी, लेकिन यह अवधि नवंबर 2023 में खत्म हो चुकी है। फिर भी उन्हें अब तक यात्रा की अनुमति नहीं मिली है और सरकार ने कोई नई आधिकारिक जानकारी भी नहीं दी है।
लीना का कहना है कि “सरकार इन्हें सार्वजनिक जीवन में दिखने देती है ताकि दुनिया को लगे कि उन्हें आज़ादी मिली है। लेकिन असल में वे खुद को सेंसर करते हैं अपनी राय नहीं रख सकते और अपनी जेल की कहानी तक नहीं सुना सकते।”
सऊदी सरकार का जवाब
संयुक्त राष्ट्र के सवालों के जवाब में सऊदी अधिकारियों ने कहा कि लुजैन और मरियम पर केवल वही प्रतिबंध हैं जो अदालत के आदेश या प्रशासनिक फैसले से तय किए गए थे।




