बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अररिया सीट पर सभी की नज़र थी। वजह साफ थी — पूर्व सुपरकॉप, जनता के चहेते अफसर और सोशल मीडिया आइकन शिवदीप वाघमारे लांडे पहली बार चुनावी मैदान में उतरे थे।
लेकिन नतीजे आने के बाद तस्वीर बिल्कुल अलग निकली। एक समय बिहार में “डकैतो का खौफ, लड़कियों की सुरक्षा और अपराध पर नकेल” के लिए पहचाने जाने वाले लांडे इस चुनाव में खास प्रभाव नहीं छोड़ सके।
कौन आगे, कौन पीछे? – अररिया सीट का पूरा खेल
21 में से 29 राउंड की गिनती पूरी होने तक स्थिति कुछ यूं रही—
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अबिदुर रहमान (INC) – 63,953 वोट
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शगुफ़्ता अज़ीम (JDU) – 58,130
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एमडी मंज़ूर आलम (AIMIM) – 35,692
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शिवदीप W. लांडे (Independent) – 3,591
जहाँ तीनों मुख्य पार्टियों के प्रत्याशी दसियों हजार में वोट लाते दिखे, वहीं शिवदीप लांडे 60,000 वोटों से पीछे रह गए। उनके समर्थकों के लिए यह साफ झटका है।

लांडे की हार की वजहें — ज़मीन पर क्या हुआ?
1. ‘हीरो इमेज’ बनाम चुनावी गणित
लांडे की लोकप्रियता सोशल मीडिया और युवाओं के बीच बहुत मजबूत है, लेकिन चुनाव ज़मीनी नेटवर्क, बूथ प्रबंधन और जातीय समीकरणों पर चलता है।
इस बार तीनों बातों में लांडे पिछड़ गए।
2. स्वतंत्र उम्मीदवार होने का बड़ा नुकसान
बिना पार्टी के चुनाव लड़ना मतलब—
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कोई मजबूत संगठन नहीं
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कोई कैडर नहीं
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न बूथ प्रबंधन
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न ग्रामीण स्तर पर माइक्रो-mobilisation
अररिया जैसे बड़े और जातीय रूप से जटिल इलाके में यह बहुत बड़ी कमजोरी साबित हुई।
3. कांग्रेस और JDU का सीधा मुकाबला
सीट पर मुख्य लड़ाई पहले ही INC बनाम JDU की बन चुकी थी।
AIMIM ने भी 35,000 वोट काट लिए, जिससे तीन-तरफा लड़ाई तेज हो गई और स्वतंत्र के लिए जगह और कम बची।
4. ‘अफसर लांडे’ और ‘नेता लांडे’ में फर्क
लांडे की छवि एक सख्त, ईमानदार और तेज-तर्रार IPS की रही है।
लेकिन जब वे नेता बनकर सामने आए, लोगों ने उनसे वही चमत्कारिक करिश्मा उम्मीद किया —
जो ज़मीनी राजनीति में संभव नहीं था।
फिर भी एक बात साफ — लांडे का इमोशनल कनेक्शन बरकरार
हार के बावजूद एक बात हर जगह सुनने को मिल रही है—
“लांडे साहब अच्छे हैं, पर टीम नहीं थी”
“अफसर के रूप में बेहतरीन, नेता बनने में समय लगेगा”
“पार्टी टिकट मिलता तो नतीजा अलग होता”
यह प्रतिक्रिया दिखाती है कि जनता के दिलों में उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है। बस राजनीतिक जमीनी कामयाबी के लिए एक मजबूत संगठन और रणनीति की जरूरत होगी।




