यमन के मुकल्ला बंदरगाह पर सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन द्वारा किए गए हवाई हमले ने खाड़ी क्षेत्र की राजनीति में भूचाल ला दिया है। इस कार्रवाई के पीछे तर्क दिया गया कि वहां संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से जुड़ी हथियारों की एक खेप पहुंची थी, जिसे निशाना बनाया गया। बमबारी की इस घटना ने खाड़ी के दो सबसे प्रभावशाली और तेल उत्पादक देशों के बीच गहरे मतभेद पैदा कर दिए हैं, जिससे एक बड़े कूटनीतिक संकट की स्थिति बन गई है।
यूएई ने हथियारों की खेप भेजने के आरोपों को सिरे से खारिज किया, सऊदी अरब का दावा- जहाज के जरिए भेजे गए थे हथियार
सऊदी अरब का स्पष्ट आरोप है कि यमन पहुंचे एक जहाज का इस्तेमाल यूएई से हथियार भेजने के लिए किया गया था। रियाद का मानना है कि यह कार्रवाई यमन में शक्ति संतुलन को बिगाड़ने के लिए की गई थी। दूसरी ओर, संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रालय ने यमन में हथियार भेजने के इन आरोपों को पूरी तरह से निराधार बताते हुए खारिज कर दिया है। हथियारों की तस्करी के इन आरोपों और उसके जवाब में हुई बमबारी ने दोनों मित्र देशों के रिश्तों में खटास पैदा कर दी है।
बमबारी की घटना के बाद यूएई ने लिया कड़ा फैसला, यमन से अपने आतंकवाद विरोधी दस्तों को हटाने और मिशन समाप्त करने की घोषणा की
इस तनावपूर्ण माहौल के बीच संयुक्त अरब अमीरात के रक्षा मंत्रालय ने एक बड़ा और रणनीतिक कदम उठाते हुए घोषणा की है कि उसने यमन में तैनात अपने आतंकवाद विरोधी दस्तों का मिशन स्वेच्छा से समाप्त कर दिया है। गौरतलब है कि यूएई ने आधिकारिक तौर पर वर्ष 2019 में ही अपनी सैन्य उपस्थिति खत्म कर दी थी, लेकिन कुछ विशेष दस्ते वहां मौजूद थे। अब सैनिकों की इस पूर्ण वापसी के फैसले को तनाव कम करने की दिशा में एक अहम संकेत माना जा रहा है, हालांकि अविश्वास की खाई अभी भी गहरी है।
सऊदी सीमा की ओर बढ़ते अलगाववादी गुटों को लेकर बढ़ी चिंता, सऊदी अरब ने इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बताया ‘रेड लाइन’
इस पूरे विवाद की जड़ में यमन का अलगाववादी संगठन ‘साउदर्न ट्रांजिशनल काउंसिल’ भी है। सऊदी अरब ने यूएई पर गंभीर आरोप लगाए थे कि वह इस संगठन पर दबाव बना रहा है ताकि वे सऊदी सीमा की ओर आगे बढ़ें। सऊदी प्रशासन ने स्पष्ट शब्दों में अलगाववादियों के इस बढ़ाव को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक ‘रेड लाइन’ करार दिया है। दोनों देशों के बीच यह रणनीतिक खींचतान यमन के भविष्य और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) की एकता के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है।




